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संभावना

 

संभावना

उसके माथे पर बिंदिया दीपक सी
झिलमिलाई और ओठों पर गहराई
स्निग्ध मुस्कान की नदी
डूब गईं जिसमें
असंख्य नयनों की कश्तियाँ
चंद उबरने वाली वे थीं
जिनकी पतवार अपलक
ताक रही थी बिंदिया-दीप
बचना है तो
पलक नहीं झपकाना है
टूटती संभावना को
ऐसे ही पाना है।

१ फरवरी २००६

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