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अपना हक़

हम ताकते नहीं किसी का मुँह
नहीं चाहिए हमें फेंका हुआ टुकड़ा
क्योंकि जानते हैं हम
अपनी औकात अपना हक़
वो नहीं देंगे इतनी आसानी से
हमें हमारा हक़
देंगे भी कुछ तो बस उन्हें
जो हममें से बेहद लिजलिजे टहलुए हैं
जिनकी रीढ़ की हड्डी नहीं
झुके हैं जिनके मस्तक
तुम्हारे नमन में
वो नहीं हमारी कौम के पहरुए
इसलिए जागेंगे हम दिन रात
अक्षय वट की तरह
फैलकर आकाश पर
तुम्हें धरती बना देंगे
निकालेंगे तुम्हारे दिल को चीरकर
और तुम्हें जुड़ना सिखा देंगे
नहीं चाहिए हमें फेंका हुआ टुकड़ा
क्योंकि जानते हैं हम अपनी औकात और अपना हक़।

१ जुलाई २०१७

 

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