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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

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अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
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आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

 

जब दिलों में

जब दिलों में प्यार का मंज़र बनेगा
देखना उस दिन ख़ुदा का घर बनेगा।

आज शर्मिंदा है ये कहते हुए मां
मेरा बेटा एक दिन अफ़सर बनेगा।

बन गया लीडर वो अपने मुल्क का
कुण्डली में था कि वो तस्कर बनेगा।

बाप ने भी सांस ले ली आख़िरी
फूल सा भाई भी अब नश्तर बनेगा।

है यकीं इक दिन खुदा देगा मुझे भी
पर न जाने कब मेरा छप्पर बनेगा।

लग गई फिर आग कच्ची बस्तियों में
सुन रहे इक सेठ का दफ़तर बनेगा।

अब भटकने का 'शरद' को डर नहीं है
उसका रहबर मील का पत्थर बनेगा।

1  जनवरी 2005

 


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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