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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

नई गज़लें
इतना ही अहसास

कभी जागीर बदलेगी
ज़िंदगी की साँझ

मुक्तक में
तीन मुक्तक

कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई 
सिलवटें

अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  तना ही अहसास

इतना ही अहसास बहुत है
वो अब मेरे पास बहुत है।

उसके आगे सच्चे मन से,
दो पल ही अरदास बहुत है।

किस्मत हो न सीता जैसी,
महल तो कम वनवास बहुत है।

जो मज़हब सबको जीने दे
उसपर ही विश्वास बहुत है।

जो हैं पानीदार यहाँ पर,
उनकी देखो प्यास बहुत है।

अन्तिम इच्छा पूछ रहे हो,
अब जीने की आस बहुत है।

ये सुनना गाली जैसा है -
'तू अफ़सर का ख़ास बहुत है।

बहुओं पर छा गई एकता
अब ख़तरे में सास बहुत है।

कुछ सराहते ग़ज़ल 'शरद' की,
कुछ कहते बकबास बहुत है।

११ जनवरी २०१०

 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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