अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संदेश त्यागी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
कागज़ पर
चिराग
जिसमें एक दास्तान है यारो
परिवर्तन
सीमा
हमको ऐसी सज़ा दीजिए
क्षितिज

गीतों में-
कुछ कदम हम चलें
घोर यह अँधेरा है
ये सब कुदरत की बातें हैं

व्यंग्य में-
आधुनिक गीता

अंजुमन में-
उनमें वादों को निभाने का हुनर होता है
उसका नहीं है हमसे सरोकार दोस्तों
ये कहाँ ज़िंदगी भी ठहरी है

 

हमको ऐसी सज़ा दीजिए

हमको ऐसी सज़ा दीजिए,
दिल में कैदी बना लीजिए।

बज्म़ की जाँ निकल जाएगी,
हमको अपना बता दीजिए।

आदमी अब खुदा हो गया,
आदमी को बचा लीजिए।

बुतकदों से करे भी तो क्या,
अब खुदा को रिहा कीजिए।

मैकदों की ज़रूरत है क्या,
नाम उनका सुना दीजिए।

दुनिया अपनी ही बन जाएगी,
खुद को अपना बना लीजिए।

एक 'संदेश' सब के लिए,
दर्द में भी मज़ा लीजिए।

24 मार्च 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter