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अनुभूति में रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
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एक दृश्य

धूप के खूबसूरत टुकड़े पिघलने के लिए
कोई भी जगह हो सकती है
उसके तन पर एक जगह है
जहाँ रखे जा सकते हैं ओंठ
जहाँ रखे जा सकते हैं कुछ लफ्ज़
एक सुंदर तस्वीर की तरह
सूरज डूब रहा है-
गहरे सुनहरे हो रहे हैं मन के रंग
किरणें रंग रही हैं हर चीज़

तस्वीर में एक लड़की बैठी है
अकेली निरंतर किसी तेज़ सफ़र में
शांति और गति का संगम है
उसका चेहरा दुनिया का अकेला सूर्यमुखी है

विशाल पलकें फूल खिलने की तरह उठती हैं
जीवन के सूर्योदय जैसी गतिविधियाँ
उसके ओंठ धरती के रसों को सम्हाले
उसकी लालिमा जैसे शताब्दियों के सूर्योदय
मेरी धरती का दृश्य
और मैं चल रहा हूँ।

५ जनवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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