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अनुभूति में डॉ. राजेश कुमार माँझी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
ताड़ की आड़
पैबंद लगा कपड़ा
बँधुआ मजदूर
भूख
वास्तविक विकास
 

 

वास्तविक विकास

आजादी से आज तक
कहाँ प्रगति हुई है
किसका हुआ है आर्थिक विकास
मुझको तो पता नहीं।

सरकारी तौर पर तो
निर्धनता दूर हुई है
पर मेरे ही कुटुम्ब वालों के पास
रोटी तक नहीं है।

स्वास्थ्य की बात करें तो
इतना विकास हुआ है कि
मरीजों की संख्या
अस्पतालों में बढ़ गई है।

अन्न उत्पादन में
देश इतना आत्म निर्भर हुआ है कि
किसान भूखमरी से
आत्म हत्याएँ कर रहे हैं।

सरकार तो अपने स्तर पर
डिजिटल इंडिया की बात रही है
पर मेरे गाँव-देहात में
बिजली तक नहीं पहुँची है।

क्या भूखमरी, आत्य हत्याएँ
चिकित्सा सुविधाओं का अभाव
अँधेरे में जीने की मजबूरी
शिक्षा के क्षेत्र में
संस्थानों की मनमानी
इसी का नाम विकास है
या विकास की परिभाषा
कोई और होती है।

१ जुलाई २०१८

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