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अनुभूति में डॉ. राजेश कुमार माँझी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
ताड़ की आड़
पैबंद लगा कपड़ा
बँधुआ मजदूर
भूख
वास्तविक विकास
 

 

भूख

गरीब का बच्चा बैठा है
जमीं पर बिछाकर
एक चटाई
वह भी फटी हुई
एक कोने से
और दूसरा
चूहे कुतर गए हैं कोना।

आखिर क्या करें ये बेचारे
चूहे ही तो हैं
खाने को जो कुछ नहीं मिलता।

क्या मालूम था इन चूहों को
दाने नसीब न होंगे
इस झोपड़ी में
दो-दो दिन बाद भी।

बच्चा भी भूख से
तड़प-तड़प कर
रो-रोकर
लेट गया है
वहीं उस चटाई पर
और चूहे भी भूखे हैं
पर बच्चे पर
दया आ गई है उनको।

चूहे काटेंगे नहीं चटाई अभी
बच्चा जो लेटा है उस पर
इंतजार कर रहे हैं वे बेचारे
उसके हटने का टकटकी लगाए।

चटाई से उठकर
माँ से अपनी
खाना माँग रहा है बच्चा
और चटाई को भूख से
काट रहे हैं चूहे मिलकर।

दाना हो तब न पके खाना
सो नारियल के खोपरे से
पिला रही है पानी
बेबस माँ
अपने कलेजे के टुकड़े को।

कब तक पिलाएगी पानी
क्या पानी से बच्चे की भूख मिटेगी
क्या चटाई से चूहे संतोष करेंगे
नहीं-नहीं
यह असंभव है
नामुमकिन है
पानी तो छलावा है
संभव है और मुमकिन है तो
सिर्फ उनका मरना
हाँ सिर्फ उनका मरना।

१ जुलाई २०१८

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