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अनुभूति में डॉ. राजेश कुमार की रचनाएँ-

एक लहर
बीज
तुम्हारे लिए
तुम्हारा आना
मेरे शब्दों की सीमा

 

तुम्हारा आना

जैसे हवा छूकर आए
शिशु पलने को
भुला दे यह दुनिया
और आनंदित कर दे
हृदय को।

तुम्हारा आना
जैसे हवा छूकर आती है
नदी का जल
या नदी की कलकल
या कोई हिरनी चंचल

तुम्हारा आना
जैसे हवा छूकर आए मलय पर्वत
और सुरभित कर दे
यह मन प्रांगण।

तुम्हारा आना
जैसे हवा छूकर आती है
हरे-भरे खेतों को
और ताज़ा करती है
इन मेरी सांसों को।

तुम्हारा आना
जैसे हवा निकली हो
मंदिर की अगरु-धूम लिए
शीतल करने मन-प्राण को।

तुम्हारा आना
जैसे हवा छूकर आए बादलों को
और भिगो जाए आत्मा को
भीतर तक

तुम्हारा आना
जैसे हवा बहकी हो मधुशाला में
और कर दे ये चोला
मस्त ऊपर से नीचे तक।

९ जून २००६

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