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                      चिकुर घनाली 
                      की जलधारा 
                       चिकुर घनाली 
                      की जलधारा 
                      घिर आए सपनों के बादलधानी हुआ धरा का आँचल
 और बिछा कोमल अंधियारा
 
                      नभ में चातकमाला सुंदरनाच रही जैसे बरसाकर
 मेघराजि का जलकण सारा
 
                      अमलतास की विजय पताकालिए गा रही आज बलाका
 उमड़ी सरिता की जलधारा
 
                      कुसुम अधर अनुरंजित जलकणबरसो उमड़ घुमड़ हे सावन
 कितना मादक स्नेह तुम्हारा
 
                      २४ अगस्त २००६ 
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