| अनुभूति में
                  
                  प्रेमरंजन अनिमेष की 
                  रचनाएँ— अंजुमन में—नई रुत (लंबी ग़ज़ल)
 कविताओं में—बंद
 बचे हुए लोग
 बाज़ार में इंतज़ार
 लिफ़्टमैन
 लौटना
 |  | बंद आज ये सड़कें खाली हैंमगर इन पर चलना
 ख़तरनाक
 रोज़मर्रा की आवाजाही में
 कहां अहसास था
 कि इतनी सुंदर हैं ये
 क्या सुंदरता सदा जुड़ी होती है शर्तों से
 और सुंदर होना
 ख़तरे का अंदेशा ?
 आज पूरा समाज
 भूमिगत
 दृश्य पर केवल असामाजिक
 राजक-अराजक
 सिपाही हौर बलवाई
 और दिनों भी यों
 चलते फिरते तो सभी
 पर चलती इन्हीं की
 पटरी पर
 चाय की एक दुकान खुली है
 दुकान क्या
 ईंट मिट्टी का चूल्हा
 और कुछ सामान
 कभी कहीं उठा ले जाने लायक
 कहीं मगर वह गया नहीं
 तुम्हें क्या डर नहीं है?
 कहेंगे तो
 बंद कर लूँगा
 लेकिन वे कहेंगे नहीं
 थोड़ी ताज़गी
 धूप और थकान में
 चाहिए उन्हें भी
 बस यह अहसास नहीं
 थोड़ा इलाज
 थोड़ा सौदा
 थोड़ा मिलना जुलना
 थोड़ी खोज ख़बर
 औरों के लिए भी
 ज़रूरी है
 एंबुलेंस रोककर
 पीछे चादर में लिपटे आदमी को
 डंडे से कोंच कर
 देख रहे हैं
 क्या वह सचमुच मरीज है
 उनकी पड़ताल करनेवाला
 कोई है क्या
 कि वे परिवर्तन के हैं
 या केवल कामी
 
 विरोध के कई रास्ते हैं
 अनशन अपनी देह अपनी आत्मा को दुखाना
 बंद अपने शरीर अपने लोगों को
 कष्ट से ही लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं
 पर किसका कष्ट ?
 क्यों नहीं घेरा जाता उन्हें
 जो सीधे ज़िम्मेदार
 क्या इसलिए कि हैं सगोत्र सहोदर
 पक्ष या विपक्ष
 इत्तफ़ाक़ भर है बीच की महीन विभाजक लकीर
 और उसी रेखा को लांघने का खेल यह सब...
 हर आपदा
 होती है एक अवसर भी
 बंद नहीं होता तो यह भीतरी सड़क
 खेल का मैदान नहीं होती
 बच्चों के लिए
 जो घरवालों की मनाही के बावजूद
 खेल रहे घर से आगे निकलकर
 बच्चों को रोका नहीं जा सकता
 जैसे चिड़ियों को
 जैसे हवा को
 क्या कल के अख़बार में
 इनकी तस्वीर आएगी
 राजनीति की बिसात से अपरिचित
 खेल रहे नि:शंक
 किसके पक्ष में ये बच्चे
 किस पक्ष में होंगे
 शायद चिड़ियों के और हवा के
 जीवन और खेल के
 शायद कहना ठीक नहीं
 यह प्रार्थना है लेकिन
 मुमकिन
 क्या इतना काफ़ी नहीं ?
 सिपाहियों ने बहुत दिनों से साधे नहीं निशाने
 बेकार हो रहे उनके कारतूस
 इससे बढ़िया मौका नहीं मिलेगा
 अभ्यास का और लक्ष्य का
 बड़ों का खेल छोड़
 इधर ही घूम सकती है उनकी नली
 यहाँ भी आ सकती है गोली
 यह ख़बर सुर्खियों में ले आने के लिए
 कि बंद में बाहर आकर
 खेल रहे थे बच्चे...।
 16 अक्तूबर 2007 |