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अनुभूति में नरेश सक्सेना की रचनाएँ-

गीतों में-
आज साँझ मन टूटे

फूले फूल बबूल
बैठे हैं दो टीले
साँकल खनकाएगा कौन
सूनी संझा झाँके चाँद

छंदमुक्त में-
ईटें
उसे ले गए
कांक्रीट
कविताएँ
देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा

क्षणिकाओं में--
आघात
कुछ लोग
सीढ़ी
दरार
पानी
दीमकें

 

आज साँझ मन टूटे

रह-रह कर
आज साँझ मन टूटे-
काँचों पर गिरी हुई किरणों-सा
बिछला है
1
तनिक देर को छत पर हो आओ
चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे
निकला है

प्रश्नों के
अन्तहीन घेरों में
बँध कर भी चुप-चुप ही रह लेना
सारे आकाश के अँधेरों को
अपनी ही पलकों पर
सह लेना
1
आओ, उस मौन को दिशा दे दें
जो अपने होठों पर अलग-अलग
पिघला है

अनजाने
किसी गीत की लय पर
हाथ से मुंडेरों को थपकाना
मुख टिका हथेली पर अनायास
डूब रही पलकों का
झपकाना
1
सारा का सारा चुक जाएगा
अनदेखा करने का ऋण जितना
पिछला है

१४ जनवरी २०१३

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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