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अनुभूति में गीता शर्मा की कविताएँ—

छंदमुक्त में-
कबिरा के कबिरा रहे
खुश है हरिया
जानते हो पिता
बुदापैश्त पर कोहरा

  बुदापैश्त पर कोहरा

कोहरे ने
धुँधला किया शहर
छिप गए नदी-नहर
खूबसूरत लड़कियों ने
ढक लिये तन-बदन
घुटने तक बूटों में
कच-कच कचरती
खटृ खट निकल गईं
कुहरे के ऊपर से।

कुहरे की
सर्द-दर्द आहों से
भर गई सड़कें
धुऑ-धुऑ गलियों में
ऑखों में कड़वा सा
भरा रहा कोहरा।

सूरज को ढाँप लिया
गर्मी को चाँप लिया
कोहरे के डर से
कॉप उठी दूना
थम- थम के बहती है
जम-जम के बहती है।

बंद दरवाज़ों से
देखता है कोहरा
सिर पटकता घूमता है
पूरे बुदापैश्त को
बनाया है मोहरा।

५ जुलाई २०१०

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