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अनुभूति में गीता शर्मा की कविताएँ—

छंदमुक्त में-
कबिरा के कबिरा रहे
खुश है हरिया
जानते हो पिता
बुदापैश्त पर कोहरा

  जानते हो पिता

याद है पिता
जब मैं झगड़ कर आई थी
अपनी क्लास के एक लड़के से
बताया था तुम्हें
तुमने कहा था
अच्छी लड़कियाँ
नहीं करती हैं झगड़ा
किसी लड़के से
चौथी क्लास की उस लड़की ने
तबसे छोड़ दिया लड़ना
किसी भी लड़के से।

याद है पिता
जब मैंने प्यार किया था
अपनी क्लास के एक लड़के से
बताया था तुम्हे
तुमने कहा था
अच्छी लड़कियाँ नहीं करतीं प्यार
अपने मन से
किसी भी लड़के से
नहीं किया प्यार किसी भी लड़के से
उसके बाद।

माँ ने समझाया था
नाज़ुक हो तुम
एक बार चिटक गईं
तो जिंदगी भर केवल टूटोगी
जुड़ नहीं पाओगी कभी किसी से।
याद है पिता तब
तुम्ही ने कहा था
दुनिया डरावनी है
डर कर रहो
बच कर रहो।

जानते हो पिता
तबसे मैं केवल डरती हूँ।
बचने की कोशिश में
चौंकती हुई
खड़ी कर रही हूँ अपने आस-पास
मज़बूत दीवार।
पर पिता
नहीं गया डर
अभी तलक अपने नाजुक होने का।
अभी तलक नहीं कर पाई हूँ प्यार
न ही झगड़ा
कभी किसी लड़के से।

५ जुलाई २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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