मन में सपने अगर नहीं होते
                  हम कभी चाँद पर नहीं होते
                  सिर्फ़ जंगल में ढूँढ़ते क्यों 
                  हो
                  भेड़िए अब किधर नहीं होते
                  कब की दुनिया मसान बन जाती
                  उसमें शायर अगर नहीं होते
                  किस तरह वो ख़ुदा को पाएँगे
                  खुद से जो बेख़बर नहीं होते
                  पूछते हो पता ठिकाना क्या
                  हम फकीरों के घर नहीं होते।
                  ७ दिसंबर २००९