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अनुभूति में सत्यशील राम त्रिपाठी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अँधेरी रात में
एक हरक़त
कहीं पर कट रहे आराम
धीरे धीरे
न बजती बाँसुरी
 

'

कहीं पर कट रहे आराम से

कहीं पर कट रहे आराम से रितिकाल जैसे दिन
कहीं पर पेट की खातिर बने जंजाल जैसे दिन

प्रगति का दैत्य मारो, औ' पधारो आज घर पाहुन
प्रतीक्षा कर रहे हैं उर्मिला के थाल जैसे दिन

बना रहता हमेशा डर कि मेरा साथ ना छोड़ें
समय की आँधियों में ये फटे तिरपाल जैसे दिन

भले ही कर्म में हम लीन गौतम बुद्ध जैसे हैं
डराते हैं हमें दिन-रात अंगुलिमाल जैसे दिन

इन्हीं आँखों ने मरते ख्वाब की वीरानियाँ देखी
इन्हीं आँखों में बसते फूल से रूमाल जैसे दिन

१ मई २०२३

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