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छिटकती है चाँदनी
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तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

छिटकती है चाँदनी

चेहरे पे आप के हो भला क्यों न रौशनी
सुनते हैं पाँचों उँगलियाँ हैं घी में आपकी

हर चीज हाथ आई है माना कि आपके
अपना ही साया हाथ में आया है क्या कभी

कुछ तो ख्याल कीजिए अपने घरों का आप
जैसे ख्याल करते हैं सरहद का संतरी

हर चीज व्यर्थ जान के कूड़े में फेंक मत
हर चीज का महत्व है क्या फूल क्या कली

माना की होनहार है हर बात में मगर
दुनिया के इल्म में अभी बच्चा है आदमी

जानेंगे तुझको लोग सभी कल को देखना
माना की आज उनके लिए तू है अजनबी

इक से किसी के दिन नहीं होते हैं साहबों
क्या एक जैसी रोज छिटकती है चाँदनी

४ फ़रवरी २००८ 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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