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अनुभूति में अरुण तिवारी 'अनजान'  की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब इस तरह से मुझको
क्यों लोग मुहब्बत से
कुछ तो करो कमाल
नयन टेसू बहाते हैं
पहले से नहीं मिलते

अंजुमन में-
अगरचे मुहब्बत जो धोखा रही है
आग
कहने पे चलोगे
गम ने दिखाए ऐसे रस्ते
दिल में गुबार
बड़ी मुश्किल-सी कोई बात
ये दुनिया

 

अब इस तरह से मुझको

अब इस तरह तो मुझ को, सताया न कीजिए।
आके क़रीब दूरी, बढ़ाया न कीजिए।

करने हैं जो भी शिकवे–गिले कीजिए मगर,
गुस्से में प्यार को तो, छुपाया न कीजिए।

क्यों अपनी दास्ताँ से, मुझे ग़मज़दा किया,
हँसना मैं चाहता हूँ, रुलाया न कीजिए।

मैं ग़म ख़रीद सकता हूँ, सब आपके मगर,
क़ीमत मेरी वफ़ा की, लगाया न कीजिए।

जब टूटते हैं ख्वाब तो, होता है दर्द भी,
ऑखों में आप ख्वाब, सजाया न कीजिए।

अपना अगर बनाना है 'अनजान' ग़ैर को,
नफ़रत की बात होठों पे लाया न कीजिए।

१० जून २०१३

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