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आँखों
में तिरता है गाँव |
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आँखों में
तिरता है गाँव
सपनों में दिखता है गाँव
अलस्सुबह
ही खाट छोड़ना
आलस की जंजीर तोड़ना
दुहना गैया भैस बकरिया
हार खेत से तार जोड़ना
हल कंधों पर,
चलते पाँव
हर खेत में दिखता गाँव
त्योहारों
के रंग अनूठे
भेदभाव के दावे झूठे
दुःख में चीन भीत बन जाता
सुख के राग फाग शुचि मीठे
वारी पर
देता है दाँव
महा रास बन खिलता गाँव
अम्मा
बापू दादा दादी
बसता उनमें काबा काशी
शहरी आवोहवा न पचती
लगता कूड़ा-करकट बासी
गड़ी नाल
वो रुचता ठाँव
बातों में बतियाता गाँव- डॉ. जयजयराम आनंद |
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