अनुभूति में
सुनीता शानू की रचनाएँ-
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तो फिर प्यार कहाँ है
विचारों की शृंखला
कविताओं में-
दर्द का रिश्ता
पतंग की डोर
मेरी माँ
ऐ दोस्त |
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दर्द का रिश्ता
तेरा
मेरा रिश्ता,
लगता है जैसे. . .
है दर्द का रिश्ता,
हर खुशी में शामिल होते है,
दोस्त साथी
परंतु
तू नहीं होता,
एक कोने में बैठा,
निर्विकार
सौम्य
मुझे अपलक निहारता
और
बाट जोहता
कि
मै पुकारूँ नाम तेरा. . .
मगर
मै भूल जाती हूँ,
उस एक पल की खुशी में,
तेरे साथी उपकार,
जो तूने मुझ-पर किए थे,
और तू था चुप
बैठा
सब देखता है,
आखिर कब तक
रखेगा अपने प्रिय से दूरी,
"अवहेलना"
किसे बर्दाश्त होती है,
फिर एक दिन,
अचानक
आकर्षित करता है,
अहसास दिलाता है,
मुझे
अपनी मौजूदगी का,
एक हल्की-सी
ठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुसकुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता. . .
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता. . .
9 जुलाई 2007
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