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अनुभूति में स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की रचनाएँ-

 

छंदमुक्त में-
गुमशुदा
पुरुषोत्तम
हिन्दुत्व

 

हिन्दुत्व

बहुत पुरानी बात है
पृथ्वी के एक पूर्वी कोने में
एक अति तेजस्वी बालक ने जन्म लिया
ओजपूर्ण था मुखमंडल उसका
सभ्यता की पहली धोती उसने ही थी पहनी,
ज्ञान विज्ञान से बना था तन उसका
कीर्ति पताका लहराई ऊँचे गगन में
यशगाना की धुन फैल गई सम्पूर्ण भुवन में

धीरे धीरे वो श्रेष्ठ बालक
अति सुन्दर युवक बन गया
उसकी ज्ञान भरी बातें लोग गाने लगे
इस कोने से उस कोने तक पहँुचाने लगे
धीरे धीरे अपनी बातें भी मिलाने लगे

हाल ये हुआ है अब जबकि
हज़ारों साल हो गयी है उमर उस बालक की
बोल नहीं सकता वह
खो दी है उसने अपनी वाणी
आज भी लोग
उसके नाम के गीत गा रहे है
उसकी बात नहीं
सिर्फ अपनी ही सुना रहे हैं
नाम ले ले कर उस बालक का
थोथा ज्ञान फैला रहे हैं
जो बात उसने कभी नहीं कही
उसके नाम उद्धरित करते जा रहे हैं
वो मूक चुपचाप सबकुछ देख रहा है
सोचता है
क्या कहा था मैंने
और ये क्या कह रहा है

इस आस से कि शायद
उसकी वाणी लौट आए
फिर वो इन मूर्खों को समझाए
जिये जा रहा है वो
लांछन उन व्याख्याओं का
जो उसने कभी नहीं दिया
अपने सर लिये जा रहा है

वो ये भी जानता है
कि वो दिन कभी नहीं आएगा
सच्चाई के पत्थरों से
जो सीधी सरल सी राह
उसने बनाई थी
इसमें संस्कारों के फूल और
सहिष्णुता की छाया छाई थी
उस मार्ग से कई चक्र रास्ते
लोगों ने लिये निकाल
झूठ आडम्बर अन्धविश्वास
छूआ–छूत आदि राहों का
बिछा दिया अकाट्य जाल

महाजाल की परिधि ऐसी फैली
फैलती ही गई
सत्य मार्ग धूल धूसरित होकर
इस चक्रव्यूह में लुप्त हुआ
संस्कारों के फूल मुरझाए
वेद–पुराण सब गुप्त हुआ

सच ही तो है,
एक झूठ सौ बार कहो
तो सबने सच मानी है
हिन्दुत्व
तेरी भी यही कहानी है

२० जनवरी २००२

 

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