अनुभूति में डॉ.
शैलेन्द्र कुमार सक्सेना की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
पथिक
मैं संवेदनाओं से पूरित
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पथिक
शिखर के उस पार
हैं संभावनाएँ अपार
इधर व्यथित मन है
उधर पुलकित तन है
इधर आशाओं की अकुलाहट है
उधर नित्य नयी सफलताओं की आहट है।
इधर गुमनामी का अंधेरा है
उधर प्रसिद्धि का सवेरा है
इधर स्वप्नों के पदचिन्हों का अनुकरण है
उधर महत्वाकांक्षाओं का यथार्थ में कायाँतरण है
पर इधर भावनाओं का सम्मान है
निजत्व पर हावी संबंधों का मान है
उस ओर कर्म में झलकता अहंकार है
झूठा आचरण ही सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार है
समय का घूमता चक्र कह रहा
ज्यों सुवासित मलय निखिल विश्व में बह रहा
तुम्हें अनेकों शिखर पार करना है
उनकी ऊँचाइयों से नहीं डरना है
अहंकार को तज कर
प्रेम की वाणी से सज कर
यों ही आगे बढ़ते जाओ
अनछुई ऊँचाइयों पर विजय पाओ
हर दीन के चेहरे पर खुशियों की मुस्कान लाओ
कंगूरे की नहीं नींव की ईंट बनकर दिखाओ
क्योंकि जिन्हें यश प्राप्ति की लिप्सा नहीं
उन्हें पथ से कोई डिगा नहीं पाएगा
पथरीली राहों पर चलता एक ऐसा पथिक
इस विकृत समाज में एक नयी क्रांति लाएगा
एक नयी संरचना को जन्म दे जाएगा।
२४ नवंबर २००५ |