अनुभूति में
संजय कुमार पाठक की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
तुम्हारी वर्षगाँठ पर
पत्थर और मैं
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तुम्हारी
वर्षगाँठ पर
तुम्हारी वर्ष गाँठ पर
तुम्हें क्या दूँ मैं
शब्दोपहार।
सब तो पुराने ही लगते हैं
शब्द ढूँढता हूँ
किंतु खो जाते हैं एक अंधकार में
और फिर- सन्नाटे की आवृत्ति
सब तो पुराने ही हैं।
खालीपन से मन भर उठता है कि
काश कुछ तो बचा के रखा होता अपने पास
नहीं किया होता खर्च
उन मिलन के दिनों
जब तुम मेरे पास होते
और मेरे एक एक अक्षर ही नहीं
एक एक शब्द
तुम्हारे नये नये विरामों से जन्म पा रहे होते
किंतु ये सब बातें अब भूत की बस एक कहानी है
वर्तमान में अब
जबकि तुम्हारी वर्षगाँठ है
मैं तुमको ही
जिसे सँजो रखा था अपने दिल में
वापस लौटा रहा हूँ।
९ अगस्त २००६ |