अनुभूति में
संजय सागर
की रचनाएँ-
कविताओं में-
एक भोली-सी गाय
एक लड़की मुझे सताती है
कभी अलविदा न कहना
कल हो न हो
तेरी याद आती है
न जानूँ कि कौन हूँ मैं
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एक भोली-सी गाय
रोज़ सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है।
ऊँचे दरवाज़ों पर,
नहीं चीर
पाती उसकी आवाज़
बजते अश्लील संगीत को।
थक हार कर लड़खड़ाते
कदमों से खोजती है
पेड़ों को, हरियाली को
बहती नदियों को।
पर नहीं मिलता उसको
ऐसा कोई निशां
पूछती है पता
कभी रोकर,
तो कभी रंभाकर
ढूँढ़ती है उन रास्तों को
जो जाते हो उसके गाँव की ओर।
कोसती है
उस दिन को जब
बेचा गया था दलालों के
हाथ उसको।
याद करती है
गाँव में गुज़रे, वे सुखद पल।
पर नहीं मिले वे सुख
यहाँ, न ही मिले वे सुख
यहाँ, न ही मिलने
की आस है
रोज़ सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है
ऊँचे दरवाज़ों पर,
एक प्यारी, भोली-सी
गाय।
9
दिसंबर 2007
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