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मैं या मेरा वजूद
अक्सर टकराते हैं
मैं और
मेरा वजूद
द्वन्द्व है
निर्णय का।
कि
दोनों में है
कौन बड़ा?
मैं या फिर
मेरा वजूद
तनिक देर
दोनों में
अन्तद्र्वन्द्व।
मगर
हाय रे विडम्बना
निर्णय तक पहुँचते–पहुँचते
दम तोड़ चुका होता है
'मैं' और
शेष रह जाता है मेरा वजूद,
'मैं' के पुनरावतरण
और निर्णायक टकराहट की
पुनरावृत्ति तक?
एक अनिर्णित सवाल
हमेशा रह जाता है शेष
कि लघु 'मैं' या,
वृहद है मेरा वजूद?
२४ मार्च २००४
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