अनुभूति में
रजनीश कुमार गौड़ की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
सात छोटी रचनाएँ- भूख, बंदरिया,
रेलगाड़ी, लकीर, माटी, शिकायत, अबोध, समय।
सवाल
क्षणिकाओं
में-
नौ क्षणिकाएँ |
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सात छोटी रचनाएँ
भूख
कभी कभी सोचता हूँ कि
मैं भूख के लिये ज़िन्दा हूँ
या भूख ने मुझे ज़िन्दा रखा हुआ है!
कितनी अजीब सी बात है
इस भूख का —
न कोई आदि है न कोई अंत
आदमी भूखा ही आता है
और भूखा ही चला जाता है।
बदरिया
ऐ बदरिया
नीली आभा को तजकर
श्याम वर्ण थजकर
होले होले बरस जाओे
कही रिश्तो की तपिश मे
प्यार की फसल ना झुलस जाय
रेलगाडी
जीवन की रेलगाडी मे
आओ
हँसी खुशी सफर कर लें
कौन जाने
तुम्हे किस स्टेशन पर
उतर जाना है
लकीर
सीधी साधी
आड़ी टेढी लकीर
हाथों से निकलकर
वसुंधरा पर दौडती हुई
दिलो को बॉट गई
माटी
माटी
माटी को बहलाये
फुसलाये
जिस कोख से जन्मे
उसी पर
वज्राघात कराये
शिकायत
जीवन मे
तुम्हारा पदार्पण
गोधुलि मे हुआ
सारा दिन
तुम्हारे
कोमल साये के स्पश के लिए
अधीर रहा
अबोध
कल
उसका दामन
रक्तरजित हो गया
मॉ कहती है
'अबोध'
है मेरा बच्चा
समय
भूत को
क्या निहारे
आओ
गुलाबी भविष्य के खाके को
वर्तमान के रंगों से सवारें
८ अक्तूबर २००२ |