अनुभूति में
रजनीश कुमार गौड़ की रचनाएँ-—
छंदमुक्त में-
सात छोटी रचनाएँ- भूख, बंदरिया,
रेलगाड़ी, लकीर, माटी, शिकायत, अबोध, समय।
सवाल
क्षणिकाओं
में-
नौ क्षणिकाएँ |
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नौ क्षणिकाएँ
१
हल के पीछे दौडते किसान की रून झुन
न तन पे लँगोटी
न खाने को रोटी
पूछो तो
बिचौलिया है गुमसुम।
२
सारा दिन बोझा ढोता
साँझ ढले
अम्बर तले तानकर सोता
ठंड मे सिकुड़ता दिखता
मालिक ने
चादर दिया है या लँगोटा।
३
जमापूँजी व रिश्वतखोरी से
चलती शराब की दुकान
नशे मे धुत चालक ने
एक राहगीर का किया कल्याण
मजबूरी है टेफिक पुलिस वाले की
ले देकर किया केस तमाम।
४
मोटी मोटी घूरती आँखो से
गोरी की गरिमा को जार जार करती
नुककड़ की निगौड़ी टोली
ओर
रात के सन्नाटे मे
ड़कैतो की जबरन होली
हवलदार ने डंडा धुमाया
जमाखोरी का इल्जाम
घरवालों पर लगाया।
५
बेटी की शादी के लिए गिरवी रखा मकान
बाबूजी ओर कैसे करूँ आपके पूरे अरमान
ग्यारह सितम्बर के बाद मार्केट भी है बेजान
अरे मूढ़
जानकर मत बन अनजान
लेन देन से ही बनता देश महान।
६
गरमी के मौसम मे
जल का अविवादित विवाद
सूखाग्रस्त एरिया में
मरीचिका के पीछे भागती कतार
ओर
बाढ़ के पानी मे
तैरती मछलियो का व्यापार।
७
रेलगाड़ी मे खिसकते
भिखारी के कटोरे की तरंग
प्लेटफार्म पर
खोये सगे संबधियों वाली लिस्ट पर
टूटती भीड़ बदरंग।
८
पान खाकर आराम फरमाते
बाबू की धूल भरी मेज पर
फाइलों के पटकने से कौंधती बिजली
अफसरशाही के प्रचंड तेज से
राख होती इकानॉमी
और
अखबारों के पन्नों में
देश की प्रगति पर
नेताओं की बड़ी बड़ी बोली।
९
यह सब बरसो से घट रहा है
ऐसा कौन सा दीप
मन मंदिर में
प्रजल्लित हुआ
जिसमें जमी हुई
सवेदनाएँ पिघल रही है।
८ अक्तूबर २००२ |