अनुभूति में पवन कुमार शाक्य
की रचनाएँ-
मनुष्य की मनुष्यता
नव यौवन
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नव यौवन
उलझी लिपटी हैं लट लंपट, चंचल चितवन चहुं ओर चितै,
अल्हड़ बासंती नव योवन, मुड़कर फिर–फिर चहुं ओर चितै,
बासंती हवा का हर झोंका, उसकी जुल्फ़ों से हँसि खेलै,
ऐसे में कहाँ चुप होय 'पवन' बासंती हवा जब केलि करै,
हास करै परिहास करै, चुनरी को चूमि के प्यार करै,
सकुचाय नहीं शर्माय नहीं, चलते ही हाल बेहाल करै,
हाट हठी बासंती हवा, संग धूरि को लाय के चालि चलै,
दृग बंद करै, मदहोश करै, और लाल कपोल को चूमि चलै,
अधरन की लाली सूखि गई, अँखियन में धूरि समाबति है,
हिय में जब हल्की हाय उठै, चूनर में चाँद छिपाबति है,
फिर–फिर देखै, मुड़ि–मुड़ि देखै, अँखियन की बात न मानति है,
चुनरी सरकै, सब तन झलकै, पर 'पवन' सुधा रस पाबति है,
सर–सर फर–फर चूनर सरकत, उड़ि–उड़ि चूमत है हाथ मेरे,
बेख़बर रहे अल्हड़ यौवन या जानि के देखै ओर मेरे,
अपनी बाते, अपु ही जाने, नहि बात समझि आबै मेरे,
नहि दोष मेरे दिल को दीजौ तुम, 'पवन' उड़ाबत होश मेरे,
२४ मार्च २००६ |