अनुभूति में
पंकज कोहली की
रचनाएँ-
तुम सा बन
जाऊँ
दशा
त्रासदी
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तुम सा बन बन
जाऊँ
गर्भ में अंगारे दबाकर
अंतरमन को अपने तपाकर
तुम कैसे इतनी शांत हो
ज्वालामुखी तन को चाहते चीर
उसपर चपला का गर्जन अधीर
तुम कैसे सहती इतने तीर
सागर सी विशाल तुम
कैसे रही मनुष्य को पाल तुम
नित निहार उसके तमाशे
तुम कैसे हो इतनी मौन
रह सकता ऐसे कौन
अपना सर्वस्व कर बलिदान
तुम हसती एक महान
ए मेरी धरती माँ
मुझे यह वरदान दो
ऐसा मुझे सम्मान दो
मैं तुम सा बन बन जाऊँ
१ सितंबर २००४ |