अनुभूति में मनीष
जैन की रचनाएँ
छंदमुक्त में—
कविता वास्तविकता
तुकांत में-
प्यारे नाना जी
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कविता–वास्तविकता
बीहड़ बियाबनों में
अठखेलियाँ करता
एक शख्स
आ पहुँचा
सफेदपोशों की
स्याह बस्ती में
जहाँ
जड़ हो चुकी
संस्कृति ।
दम तोड़ चुकी
मानवता ।
पाश्चात्यीकरण की
भागमभाग देख
वो घबराया
अकुलाया।
दम घुटने लगा था
उसका ।
इस कलुषित फिजा में।
वह दौडा
अपने अतीत
अपने
जंगलों-पहाड़ों
झरनों की तरफ ।
सोचकर कि
कितना अपनापन
कैसा आनन्द ?
और सुकून था
उन बीहड़ों में ।
९ अप्रैल २००५
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