अनुभूति में कंचन
मेहता की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
बरखा बहार
सावन की बूँदें |
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बरखा बहार
चल री सखी,
देखें थोड़ी बरखा बहार,
बड़ी मुश्किल से आई हैं ये बूँदें बौछार।
चल एक–दूजे का हाथ थाम लें
और थोड़ी दूर तक सड़क नाप लें,
मन को महका जाए, बहकी हुई बयार।
चल री सखी, देखें थोड़ी
बरखा बहार।
राहों में है जल धारा और हम हैं राही मतवाले
आ जा बूंदों के संग, हम भी सावन का मज़ा लें,
आख़िर ये है मौसम की, पहली–पहली फुहार।
चल री सखी, देखें थोड़ी
बरखा–बहार।
९ अक्तूबर २००५
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