बिटिया
काहे उदास है कुछ बोल बिटिया
सपनों के झूलों मैं तू डोल बिटिया
चौका रसोई मैं बीते बहुत दिन
घर के दरवाज़े तू खोल बिटिया
साड़ी सिन्दूर ने बँधा बहुत
अब रस्मो के बन्धन तू खोल बिटिया
कब घर के आँगन यों जेल में बदल गए
कब संगी साथी केवल यादों मैं ढल गए
हँसने खिलखिलाने ने हड़ताल की कब
देखभाल चलने की नसीहत मिली कब
कब तक सहेगी और कुछ न कहेगी
कब तक बिन मर्ज़ी के सब कुछ सहेगी
आकाश पंखो से तौल बिटिया
काहें उदास है कुछ तो बोल बिटिया
२१ जुलाई २००८
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