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अनुभूति में चंदन सेन की रचनाएँ —
अभिव्यक्ति
आज़ादी का जश्न
कैसा हो सावन

 

कैसा हो सावन

ऐसा हो सावन
हों जिसमें झिंगुर के सुर
मेंढक भी गाने को हों आतुर
रेशमी फुहार के दुपट्टे में
वृष्टि पड़े टापुर टुपुर
ऐसा हो सावन
जिसमें दिलों में न रहे दूरी
सोंधी सोंधी मिट्टी में भी
खूब नाचे मयूरी
ऐसा हो सावन
जो चाहने वालों का
मिलने मिलाने का
खिलने खिलाने का
पर्व बने पावन
जिसमें लोगों के अरमान न बहें
आँधी तूफ़ानों से घर न ढहें
न कोई फिसले न कोई डूबे
और न हो प्रकृति के कारनामे अजूबे
ऐसा हो सावन
जिसमें दिमाग की गीली–गीली सोचे
पलक झपकें
और उदास यादें टपके
ऐसा हो सावन
जो छप छप सड़कों पे
और गली के लड़कों पे
दिखे
ऐसा सावन भी क्या जिसमें
गर्म चाय न हो और भुट्टे न सिकें
ऐसा हो सावन
जिसमें बहता जाए
मुसलसल पानी
और ठण्ड ख्यालों में
दिल हो थोड़ा रूमानी
गीली मिट्टी से झाँककर जिसमें
बीज अंकुरित होवें
और दुखियारे किसान खुशी से
नई फसल बोवें
ऐसा हो सावन
जिसमें बनें स्वतः गीत
मन में उमड़ आए ढेर सारी प्रीत
आ! रे मन के मीत
कि मौसम है आशिकाना मन भावन
इस बार तो
तेरे जैसा आया है ये सावन

२४ दिसंबर २००४

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