अनुभूति में
अवतंस कुमार
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आज मुझे तुम राह दिखा दो
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आज मुझे तुम राह दिखा दो
आज मुझे तुम राह दिखा दो!
अंतहीन विस्तार डगर की
क्षणिक बिंदु-सी वय जीवन की
मंज़िल मेरी मुझे बता दो।
आज मुझे तुम राह दिखा दो।
भेड़-चाल में नर-मुंडों की
भरी भीड़ में अनजानों की
अपना मेरा मुझे मिला दो।
आज मुझे तुम राह दिखा दो।
अंधकारमय जीवन मेरा
अश्रु-स्वेद से लथपथ काया
मधुर चाँदनी सर्वत्र लुटा दो।
आज मुझे तुम राह दिखा दो।
क्रमिक हताशा के भँवर में
पथरीली, कँटीली डगर पै
पुष्प आशा का एक खिला दो।
आज मुझे तुम राह दिखा दो।
9 मई 2007
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