अनुभूति में
अंशुमान शुक्ला
की रचनाएँ—
तुकांत में-
मन का गीत
जन्मदिवस का उपहार
संकलन में-
होली है-
होली आज मनाना है
गुच्छे भर अमलतास–तेज
धूप में, छत पर |
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मन का गीत
आज मन की बातों का
एक गीत बनाना चाहता हूँ
भूली बिसरी यादों को मैं
तुम्हें सुनाना चाहता हूँ
थे वे क्या दिन बचपन के
जब दिन भर खेला करते थे
करते थे शैतानी जी भर
पर पकड़े जाने से डरते थे
शाम सबेरे रात दोपहर
रंग बिरंगी थी दुनिया सारी
छोटी सी दुनिया सपनों की
प्यारी प्यारी न्यारी न्यारी।
गया बचपना आयी जवानी
भरी जोश से थी जिन्दगानी
था जज्बा दुनिया पलटने का
सपनों को सच में बदलने का
लेकिन प्यारे साथ हमारे
हुआ ऐसा कि हम हुए बेचारे
सपनों के टूटे टुकड़ों पर
घूम रहे मारे मारे
आज तो संग तनहाई है
विस्मृत हुई बातों की एक
धुँधली याद छुपायी है
लेकिन सपनों को पूरा करने की
हसरत नहीं गँवाई है
वो सपने ही तो हैं
जिनके कारण मै जी लेता हूँ
विष भरे इस जीवन को
शिव बन कर पी लेता हूँ
सपनों में संसार छुपा है
दुनिया भर का प्यार छुपा है
सपनों की इस दुनिया में
तुम्हें बुलाना चाहता हूँ
१६ अप्रैल २००२
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