अनुभूति में
अमित अग्रवाल की
रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
सुख की कोठरी
हास्य व्यंग्य में-
मोबाइल
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मोबाइल
एक नौजवान
अच्छे कपड़े पहने
और सीना ताने
सड़क के किनारे अकेला खड़ा था।
गले में उसके सर्प रूपी
एक तार पड़ा था।
देख कर लगता था कि
अभी अभी किसी से लड़ा था।
शिवजी के इस मार्डन अवतार को
देख कर जागी
थोड़ी जिज्ञासा
सोचा, कौन है ये बंदा काला सा।
जैसे ही हम पहुँचे उसके नजदीक,
वो बोला,
क्या कर रहे हो प्रदीप?
मैं बोला,
मैं प्रदीप नहीं हूँ भाई
कैसे ये बात तुम्हारे मन में आई।
इससे पहले मैं कुछ और बोल पाता,
वो बोला,
अभी तुम्हारे घर जाता हूँ
और अपने उधारी के पैसे
तुम्हारे पिताजी से लेकर आता हूँ।
यह सुनकर मेरा दिमाग चकराया,
मैं जोर से चिल्लाया--
कौन से पैसे, कैसे पैसे?
हम तो तुम्हें जानते तक नहीं
और बात तुम करते हो ऐसे।
वो थोड़ा झल्लाया, फिर सकपकाया
और बोला,
प्रदीप इस समय एक पागल
मेरे सामने खड़ा है,
जाने क्यों मेरे ही गले पड़ा है।
अभी तो इसी से पीछा छुड़ाता हूँ
तुम्हें बाद में फ़ोन मिलाता हूँ।
अब जाकर खुले हमारी बुद्धि के ताले,
हटे हमारी अकल से बादल काले।
जिसे समझे हम शिवजी का साँप
वो मोबाइल का हैन्डसफ्री था।
अब वहाँ और रुकना
हमारे लिए बेवकूफी था।
मित्रो!
मोबाइल भी अजीब यंत्र है
जैसे जादुई चिराग का मंत्र है
हर मानव के पास मोबाइल है
इसकी तो बड़ी स्टाइल है
आजकल वर्मा जी जब भी
मिसेज को
मिस करते हैं,
तुरंत उन्हें मिस काल देते हैं।
शर्मा जी तो उनसे भी आगे हैं,
एसएमएस पर ही
पूरा बिज़नेस संभाल लेते हैं।
आशिक अपनी प्रेमिका को
मोबाइल पर ही पटाता है
और पंडित शादी के फेरे
मोबाइल पर ही पढ़ाता है ।
आजकल परीक्षा में पास होना
बहुत आसान है,
मुन्नाभाई से मिलता
यही तो ज्ञान है।
अब वो दिन दूर नहीं जब
आदमी में एक आनुवांशिक
बदलाव आएगा,
बच्चा पैदा होते समय ही
कान की जगह हैन्डसफ्री
और हथेली की जगह
कीपैड लाएगा।
९ दिसंबर २००५ |