अनुभूति में
आलोक शंकर
की रचनाएँ —
आग़ाज़
चार छोटी कविताएँ
भीष्म
भीष्म-प्रतिज्ञा
परछाइयाँ
हाशिये पर ज़िंदगी
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आग़ाज़
शुष्क शीर्ण
कमलिनी लता में
नवल किसलय
आज फूटा-
नीरसा मृत्तिका में
कहीं तो रस आज बाकी है।
सुनो-
निस्पंद
नीरव
निर्वात में गुनगुनाते
नूपुरों का क्वणन-
दिगंत शब्दमान है,
जिह्वा कट गई,
वदनों में
कुछ-
आवाज़ बाकी है।
बचो,
झंझा से उड़ गए पर्दे धवल
द्युति की द्युति में
दिक्कालिमा को प्रश्रय नवल,
कुछ भी तो नहीं अकिंचन-
श्यामल, शीतल
क्या कहीं कोई
राज़ बाकी है?
सब तो है, पर
कुछ नहीं,
शायद-
तलाश आज बाकी है।
देखो-
आदमी की लाश से
कुछ अमर्त्य-सा
उठ रहा है,
हिम-सा उष्ण,
आग सा शीतल
अभी-
आदमीयत का
आग़ाज़ बाकी है।
9 जनवरी 2007
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