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अनुभूति में अखिलेश सिन्हा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
मोक्ष
प्रेम
हिन्दू मुस्लिम

 

हिन्दू मुसलिम

बचपन में
दूर से ही देखा था
बिचले दरिया को
और बिल्कुल करीब से सुनी थी
आवाज इक टूटते पुल की

उस पुल के टूट गिरने से
छलकी थीं जो बूँदें
भिगोया था उन्होंने
अच्छी तरह याद है
आज भी मुझे

पर कल की धूप में जब
तरसा था मैं
एक बूँद जल को
इसी दरिया के पानी ने
मेरी प्यास बुझायी
जिसे मैं खारा समझता था

१ जनवरी २००१

 

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