|
प्यार भरा जहाँ
उड़ रहा है पंछी आज़ाद गगन में,
अपनी ही धुन में।
न छल, न कपट, और न ही कोई
डर उसके मन में।
कहता है जो देख रहा हूँ इस दुनिया में,
अच्छा था आँखे ही न होती मेरी आज।
मर गई है इंसानियत आदमी की,
बैठ गया है शैतान आदमी के सिर पर आज।
इसीलिए उड़ रहा हूँ, उड़ा ही जा रहा हूँ,
रुक ना रहा हूँ कहीं पर।
कर रहा हूँ तलाश एक ऐसे जहाँ की,
प्यार ही प्यार होगा जहाँ पर।
जहाँ भाई न भाई का खून बहा रहा होगा,
जहाँ न नफ़रत की आग में
वो ज़िंदा लोगों को जला रहा होगा।
जहाँ खुश होगा आदमी थोड़ा मिलने पर भी,
जहाँ न कोई भी किसी और के
हक को छीनकर खा रहा होगा।।
जहाँ रहता होगा खुदा हर आदमी के सीने में,
जहाँ न मंदिर मस्जिद के नाम पर झगड़े होते होंगे।
जहाँ दर्द समझता होगा हर कोई किसी का,
जहाँ खुशी में ही नहीं, गम में भी लोग मुस्कराते होंगे।।
वरना जीना है मुश्किल इस नफ़रत भरी दुनिया में,
इसीलिए इस दुनिया से दूर जा रहा हूँ।
शायद मिल जाए कहीं एक ऐसा ही जहाँ ज़मीं पर,
बस उसी की तलाश में उड़ा जा रहा हूँ।
बस उड़ता ही जा रहा हूँ. . . . .
9 मार्च 2007
|