पाँच क्षणिकाएँ
१- ढूँढता हूँ
जब तुम न थीं
तो प्रतीक्षा थी
अब तुम हो
तो ढूँढता हूँ उस प्रतीक्षा को
२- मेरा प्रेम है शिलालेख
यदि
मेरा प्रेम हे शिलालेख यदि
तो तुम्हारा मौन
उस पर उत्कीर्ण लिपि
हर बार-
बाँच बाँच लेता हूँ जिसे
भीतर तक उड़ेलता
३- याद
आता ही होगा वह-- कहकर
उसके कुशलक्षेम में
होमती सर्वस्व अपना
रात के तीसरे पहर
जगमग होती किसी की याद में
४- इस बार हरी है
इस बार हरी है ये वनखंडी
धारे देह पर अनगिन लू के फफोले
हर रात के बाद
ज्यों निखर आता उजास
हर आकाल के बाद
पहाड़ के शिखर पर हरीतिमा
५- तपती दुपहरी
तपती दुपहरी
यकायक
उतर आई शीतल छाँव
पखेरू
उतरते नभ से
अतल में डूबते
करते नया तन मन
१४ जून २०१०
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