पाँच छोटी
कविताएँ
१- एक चिड़िया
गा गई
एक चिड़िया
मंद स्वर में गा गई
विरासत
मौन थरथराता अहसास
तैरता ज्यों शिलाखंड में हवा
छोटा सा ही सही
जीवाश्म जो वह बुन गई
२- अतीत- पसरा
हुआ
अतीत-
खोखल पेड़ सा पसरा हुआ
गुजरे हुए क्षण छाल सूखी
पेड़ कम बस ठूँठ है अब
हरीतिमा मँडराती हुई
घूरती भीतर सुराखों से
डरी सी झाँकती
स्मृति गोया गिलहरी
काल के उजाड़ सन्नाटे तले
फुदकती
इस डाल से उस डाल
३- क्षण वह लौट
नहीं आएगा
क्षण वह लौट नहीं आएगा
तब तक याद रहेगा वह, आएगा
मौन तोड़ता हुआ फुसफुसाएगा
- मिलाकर बाहें अपनी
चले गए ऊँचे नभ को
छूते पेड़ों की छायाएँ चीर
चाँदनी रजनी में सागर तट
आक्षितिज
हम तुम
४- रेत के ढूह
रेत के घुमावदार
लहरदार ढूह
तोड़ती भूमिगत जलस्रोत
चीरती कलेजा अभिशप्त धोरे का
फव्वारा सा बुनती
चिड़ी एक आकुल तड़पती
धापकर उलीचती जल
छकने पर रगड़ती चोंच जल-फुहार पर
अठखेलियाँ करती
५- गरी नींद में
सोई तुम
गहरी नींद में सोई तुम
कविता पढ़ते वक्त
मुझमें इच्छा जागी
कि सुनाऊँ तुम्हें एक अच्छी सी कविता
पर चाहकर भी नहीं चाहता मैं
कि तुम्हारा स्वप्न ध्वस्त हो
- स्वप्न जिसका केंद्रीय पात्र मैं हूँ
१ अक्तूबर २०१२ |