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कवि की स्वाभाविक विशेषताएँ

स्वाभाविक विशेषताओं का विकास

संवेदना का विकास और अनुभूति की गहनता

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अक्सर लोग कहते है, आप अच्छा लिखते हैं ।" दिल भी करता है कि कुछ लिखें और लिखने के बाद अच्छा भी लगता है तो निश्चय ही यह एक जन्मजात कवि की पहचान है।

यह सच है कि कवि या कलाकार किसी को बनाया नहीं जा सकता। इसके लिये जन्मजात प्रतिभा, लगन और झुकाव अपने आप ही होता है पर उसे निखारा तो जा ही सकता है।

अक्सर इसके निखरने या प्रकाशित होने में बरसों लग जाते हैं कभी समय की कमी के कारण तो कभी मार्गदर्शन के अभाव में।

मार्गदर्शन ? तो क्या कोई मार्ग भी है अच्छा कवि होने का?

क्यों नहीं, अनेक मार्ग हैं और व्यक्तिगत रूचि के आधार पर उनका चुनाव किया जा सकता है। हर व्यक्ति प्रसिद्ध कवि या लेखक हो जाय यह ज़रूरी नहीं पर कुछ अच्छी कविताएं हर कोई ज़रूर लिख सकता है। जहाँ अकेले संघर्ष करते हुए पहुँचने में दो साल लगते हैं वहीं सही मार्गदर्शन द्वारा दो महीने में पहुँचा जा सकता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि सही रास्ता न मिलने के कारण संघर्ष रास्ते में ही खत्म हो जाता है और एक अच्छे हिन्दी कवि की काव्य–यात्रा प्रारंभ होने से पहले ही समाप्त हो जाती है।

ये मार्ग क्या हैं और इनका चुनाव कब और कैसे किया जाय इस विषय पर बाद में बात करेंगे। पहले यह देखा जाय कि अच्छे कवि के स्वभाव में क्या गुण होने चाहिये और व्यक्तित्व में वे क्या विशेषताएं होती हैं जो एक इन्सान को कवि बनाती हैं?


कवि की स्वाभाविक विशेषताएँ :—

संवेदना : आसपास की घटनाओं के प्रति संवेदनशील होना, उन्हें वयक्तिगत और सामाजिक स्तर पर गहराई के साथ अनुभव करना। उसके अनेक पहलुओं पर विचार करना और उनको जानने की इच्छा होना। मौसम, पर्व और अपने कार्य से जुड़ी हुयी घटनाओं को भावनात्मक स्तर पर महसूस करना और उनके बारे में जानना।

रचनात्मक रुझान : अपनी संवेदनाओं और अनुभूतियों से स्वयं को अविचलित न होने देना बल्कि इन्हें व्यावहारिक या रचनात्मक रूप में अभिव्यक्त करने की इच्छा होना। कड़वी लगने वाली बात को व्यंग्य या उपदेश के रूप में कहने की इच्छा होना। अत्यधिक आनंद हो तो शब्दों में बांध लेने की इच्छा होना जैसे एक फोटोग्राफर किसी चित्र को सदा के लिये सहेज लेता है।

साहित्यिक अभिरूचि : कविताओं और साहित्य के प्रति रूझान होना। विशेष रूप से हिन्दी कविता लिखने के लिये हिन्दी कविता में रूचि होना। जहां कहीं हिन्दी कविता मिल सके उसको पढ़ना और उसकी विशेषताओं को समझने की कोशिश करना। हिन्दी में नया और आधुनिक क्या लिखा जा रहा है, कैसे लिखा जा रहा है इसकी जानकारी रखना।

लिखने की प्रवृत्ति : लिखने की इच्छा होना। इसको अपनी आदत बनाने की इच्छा होना। विशेष जैसे जन्मदिन, विवाह या उत्सव पर उपहारों या अभिनंदन पत्रों पर अपनी रची हुई पंक्तियां लिखने में अधिक सुख अनुभव होना।

महत्वाकांक्षा : क्या कविताओं को पढ़ते समय ऐसे विचार आते हैं कि मैं भी कविता लिखता / लिखती हूँ पर शायद इतनी अच्छी नहीं। अगर मैं ध्यान दूँ तो शायद इस तरह की एक कविता ज़रूर बन सकती है। अगर मैं थोड़ा और समय देकर अपनी कविता को ठीक करने की कोशिश करूँ तो शायद ज़रूर ऐसी कविता लिखी जा सकती है।

भाषा से दोस्ती : हिन्दी में कविता लिखने के लिये यह तो जरूरी नहीं कि हिन्दी साहित्य की एक बड़ी डिग्री नाम के साथ जुड़ी हो पर भाषा से प्रेम और और उससे दोस्ती के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है। हिन्दी में लिखना है तो हिन्दी साहित्य और उससे जुड़े हुए भारतीय साहित्य की सामान्य रूप से अच्छी जानकारी होनी ज़ररूरी है।

संस्कृति का ज्ञान : कविता मनुष्य के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की परिचायक होती है। आप जिस समाज में रह रहे हैं उसका और भारतीय संस्कृति दर्शन और सामाजिक जीवन की पहचान अच्छी कविता लिखने में बड़ी सहायता करते हैं। अगर हिन्दी और भारतीय संस्कृति की अच्छी जानकारी है तो यह निःस्ांदेह अच्छी कविता लिखने में सहायक होगी।

धैर्य : अपनी कविता की आलोचना और उसके विषय में मित्रों सहयोगियों अध्यापकों और विद्वानों की राय को ध्यान पूर्वक सुनने और उसके अनुसार प्रगति करने से अच्छी कविता लिखने में सहायता मिलती है। हर कला की तरह कविता निरंतर अभ्यास की वस्तु है। इसमें धीरे धीरे निखार आता है इसलिये धैर्य पूर्वक लिखते रहना। निराश हो कर छोड़ न देना बहुत आवश्यक है।

परिश्रम : हर विद्या की तरह कविता की रचना में भी निरंतर परिश्रम की आवश्यकता होती है। यदि हिन्दी का प्रयोग दैनिक जीवन में नहीं हो रहा है तो नियमित रूप से दो या तीन घंटे प्रति सप्ताह हिन्दी के साथ बिताना बहुत आवश्यक है। इसके लिये हिन्दी भाषा भाषियों का साथ, विश्वजाल के हिन्दी जालघरों पर नियमित संचरण, रेडियो पर हिन्दी की विदेश सेवाओं और जो भी किताबें मिल सके उसका पढ़ना सहायक हो सकता है।

स्थान और साधन : सबसे महत्वपूर्ण और विशेष यह है कि अपना एक एकांत कोना हो जहाँ सुविधा के साथ बैठ कर लिखा और पढ़ा जा सके। जहाँ पहुंच कर लगे कि कितनी शांति है यहाँ भीड़ भरी दुनिया से दूरॐ

यदि इन दस विशेषताओं में से सात की सुविधा भी जीवन में मिली हो तो बाकी तीन का विकास करते देर नहीं लगती। और जहाँ ये सब एक साथ मिल गयीं तो सुन्दर कविता बनते देर नहीं लगती। शायद इनमें से कुछ के बिना भी अच्छी कविता बन सकती है। इसलिये कभी भी कहीं भी कोशिश करने में कोई बुराई नहीं।
 
(अगले पृष्ठ पर — कवि की स्वाभाविक विशेषताओं का विकास कैसे करें
)

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