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शरद महोत्सव हाइकु में

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नीली घाटी में
ठिठुर के सो गई
तनहा रात।

—मीना छेड़ा
२२ दिसंबर २००५

ना ही लिबास
न घर न आवास
सर्दी बिछौना।

—आनंद उपाध्याय
२३ दिसंबर २००५

सर्दी की धूप
उतरी आँगन में
ले शिशु रूप।

—रामेश्वर दयाल कांबोज 'हिमांशु'
२४ दिसंबर २००५

ठहर कर
देखी इंसानियत
ठिठुरी हुई।

—डा सुदर्शन प्रियदर्शिनी
१९ दिसंबर २००५

सो गए सब
प्रकृति की गोद में
मीठी सी नींद।

—सारिका सक्सेना
२० दिसंबर २००५

कंबल ओढ़े
बाबा की कहानियां
स्मृति में कैद।

—जैनन प्रसाद
२१ दिसंबर २००५

अम्मा के किस्से
चाय और ग़ज़क
शीतलहरी।

—अविनाश अग्रवाल
१६ दिसंबर २००५

बैठे लॉन में
सेंकें नरम धूप
मज़ा सर्दी का।

—सुरेन्द्र मरडिया
१७ दिसंबर २००५

अलस धूप
आँगन में लेटी है
रानी बेटी है।

—डा शैल रस्तोगी
१८ दिसंबर २००५

ओढे शरद
धूप का उत्तरीय
मोहित धरा

—मंजु महिमा भटनागर
१३ दिसंबर २००५
 

बर्फ में ढली
बच्चों की कलाकृति
हिम मानव।

—अश्विन गांधी
१४ दिसंबर २००५

जाड़े की रात
बर्फ के बिछौने में
दुबकी पड़ी।

—शकुंतला तलवार
१५ दिसंबर २००५

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