अनुभूति में
डॉ. भगवत शरण अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं मे-
कुछ और हाइकु
हाइकु में
दस हाइकु
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दस हाइकु
मर जाऊँगा
यकीन नहीं होता
फिर क्या होगा?
सत्य ने छला
झूठ ने छला होता
दुख न होता।
कहानी मेरी
लिखी किसी और ने
जीनी मुझे है।
नेता वो शब्द
अर्थहीन व्यर्थ
अर्थ अनेक।
जब भी मिले
कहना कुछ चाहा
कहा और ही।
बोए सपने
सींचे इन्द्रधनुष
फले कैक्टस।
बूँद में समा
सागर और सूर्य
हवा ले उड़ी।
उनके बिना
दीवारें हैं‚ छत है
घर कहाँ है?
मैं था ही कहाँ?
जन्म भर व्यर्थ ही
ढूँढ़ता रहा।
हाथों झुलाया
भूखे रह खिलाया
बुढ़ाये स्वप्न।
१६ जून २००५ |