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अनुभूति में योगेन्द्र प्रताप मौर्य की रचनाएँ

गीतों में-
कंकरीट का फर्श
कोहारों की नगरी
चुभते रहे बिछौने
दूर देश से बादल आए
मौन खड़ा क़ानून

 

कंकरीट का फर्श

लील गई मिट्टी की खुशबू
कंकरीट का फर्श

आनाकानी सावन करता
लोकगीत को भूला
और गाँव से रूठ न जाने
कहाँ गया है झूला

जारी है अब संस्कृतियों का
लगातार अपकर्ष

त्योहारों का हर्ष नहीं अब
अपना साथ निभाता
बड़े-बुजुर्गों की नजरों से
अक्सर ही कतराता

नहीं चबूतरे शेष रहें अब
किससे करें विमर्श

१ नवंबर २०१९

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