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अनुभूति में यतीन्द्र राही की रचनाएँ

गीतों में-
उपवन को ही ज्ञात नहीं
कोई उत्सव नहीं मना
बिलकुल बंजर

अंजुमन में-
डरा डरा घबराया दिन

 

कोई उत्सव नहीं मना

युग बीते
मेरे आँगन में
कोई उत्सव नहीं मना।

मौसम जाने कितने आए
पर निकले वे सभी पराए

युग युग बीते
कोई मौसम
हो न सका मेरा अपना।

टूट रहे हैं अक्षर अक्षर
अर्थों में है रहा शून्य भर

छंद साधते
युग बीते पर
गीत एक पूरा न बना।

सज़ा मिली पर अवधि अनिश्चित
साँस साँस में पीड़ा संचित

दिन पर दिन
होता जाता है
क्रूर और एकांत घना।

१५ सितंबर २००८

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