डरा डरा घबराया-सा दिन
लगता बहुत पराया-सा दिन
सूरज से ठुकराया-सा दिन
हारे हुए जुआड़ी जैसे
सब कुछ लुटा-लुटाया-सा दिन
अपनी ही करनी से लगता
शरमाया झुंझलाया-सा दिन
कहाँ न जाने रहा रात भर
कालिख मल कर आया-सा दिन
बादल ओढ़े पड़ा हुआ है
डरा-डरा घबराया-सा दिन
कल तक तो सब ठीक-ठाक था
आज मगर कुम्हलाया-सा दिन।
१५ सितंबर २००८
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