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अनुभूति में यतीन्द्र राही की रचनाएँ

गीतों में-
उपवन को ही ज्ञात नहीं
कोई उत्सव नहीं मना
बिलकुल बंजर

अंजुमन में-
डरा डरा घबराया दिन

 

डरा डरा घबराया-सा दिन

लगता बहुत पराया-सा दिन
सूरज से ठुकराया-सा दिन

हारे हुए जुआड़ी जैसे
सब कुछ लुटा-लुटाया-सा दिन

अपनी ही करनी से लगता
शरमाया झुंझलाया-सा दिन

कहाँ न जाने रहा रात भर
कालिख मल कर आया-सा दिन

बादल ओढ़े पड़ा हुआ है
डरा-डरा घबराया-सा दिन

कल तक तो सब ठीक-ठाक था
आज मगर कुम्हलाया-सा दिन।

१५ सितंबर २००८

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