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अनुभूति में विष्णु सक्सेना की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आँखों में पाले
जब कभी भी हो तुम्हारा मन
रंग है बसंती
स्वार्थ की दुपहरी में

गीतों में-
छोड़ चली क्यों साथ
तृप्त मयूरी हो ना पाई
दुख में सुख की मधुर कल्पना
मन का कोरा दर्पन
हाथ की ये लकीरें
हो सके तो

  रंग है बसंती

रंग है बसंती
तो रूप है गुलाब
देख लिया तुझको तो छोड़
दी शराब

पीला सा बस्ता ले सरसों के फूल,
जाते हैं पढ़ने को अपने स्कूल,
अनपढ़ भी बैठे है खोल
कर किताब।

आपस में बतियाते पीपल के पात,
खूब रात रानी के संग कटी रात,
सुनकर ये चम्पा पर
आया शबाब

गदराये गेंदे और सूरज मुखी,
वासंती मौसम में सब हैं दुखी,
हरियाली पतझड़ से ले
रही हिसाब

१८ जुलाई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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