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अनुभूति में विष्णु सक्सेना की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आँखों में पाले
जब कभी भी हो तुम्हारा मन
रंग है बसंती
स्वार्थ की दुपहरी में

गीतों में-
छोड़ चली क्यों साथ
तृप्त मयूरी हो ना पाई
दुख में सुख की मधुर कल्पना
मन का कोरा दर्पन
हाथ की ये लकीरें
हो सके तो

  हाथ की ये लकीरें

हाथ की ये लकीरें, लकीरें नहीं
ज़ख़्म की सूचियाँ हैं, इन्हें मत पढ़ो
दिल से उठते धुएँ को धुआँ मत कहो,
दर्द की आँधियाँ हैं, इन्हें मत पढ़ो!

मुसकराई जो तुम स्वप्न आने लगे,
खिलखिलाईं तो दिन भी सुहाने लगे,
जब तुम्हारी नज़र ने हमें छू लिया,
अपनी आँखों के आँसू सुखाने लगे,
अब न आँसू, न सपने, न कोई चमक
खोखली सीपियाँ हैं, इन्हें मत पढ़ो!
हाथ की...

मछलियाँ थीं मगर जाल डाले नहीं
पास कंकर बहुत पर उछाले नहीं,
तुमको सीमाएँ अच्छी लगी इसलिए,
पाँव चादर से बाहर निकाले नहीं।
पृष्ठ कोरे हैं तो क्या हुआ फेंक दो-
अनलिखी चिट्ठियाँ हैं इन्हें मत पढ़ो!
हाथ की...

उम्र-भर हाथ सबको दिखाते रहे,
और निराशा में आशा बँधाते रहे,
जब से देखा तुम्हें फूल से प्यार है,
हम मुंडेरों पे गमले सजाते रहे,
चुभ रहे जो तुम्हें तेज़ काँटे नहीं,
ये मेरी उँगलियाँ हैं, इन्हें मत पढ़ो।
हाथ की...

मन बहकने लगा और घबरा गए,
भूख इतनी लगी धूप भी खा गए,
ज़िंदगी-भर बबूलों में भटका किए,
लौटकर अब उसूलों के घर आ गए,
अब पहाड़े सही याद कर लीजिए,
जो ग़लत गिनतियाँ हैं उन्हें मत पढ़ो!
हाथ की...

१ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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