अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विद्याभूषण मिश्र की रचनाएँ-

गीतों में-
तुलसी
रिश्वतखोर हुआ है माली
शंका की देहरी पर

  रिश्वत खोर हुआ है माली

द्वार पर हैं लोभी प्रहरी
रास भी है लगती बहरी
कर्म रोगी होकर चलते
सभी के मन में भ्रम पलते
निरपराध भय से हैं आकुल
मूल्यहीन बंधन।

लूटते हैं भ्रष्टाचारी
फिर रहे निर्भय व्यभिचारी
दलों की दलदल खूब बढ़ी
व्यथा जनता के शीश चढ़ी
हर डगाल पर लिपटे विषघर
आहत चंदन-वन।

रोशनी डरी-डरी लगती
विवशता जन-मन में पलती
पसीना का होता अपमान
कनक कुंडल पहना अभिमान
पगडंडी बेहाल पड़ी है
भिक्षुक का क्रंदन।

मंच चढ़ मानपत्र बोलें
वचन में मिथ्याएँ घोलें
स्वार्थ-प्रेरित है अभिनंदन
उधारी गीतों का वंदन
परवश वाह-वाह होठों पर
भूखे आमंत्रण।

२५ मई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter